आखिर ये देश किसका है????????
इन दिनों महाराष्ट्र में जो घटित हो रहा है, उसे देखकर दिल कचोटता है। शिवसेना व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने वहां मराठी-गैरमराठी और भाषावाद का जो मुद्दा बनाया है। वह किसी भी सच्चे देशवासियों को बर्दाश्त नहीं होगा। मुंबई देश की धड़कन और आर्थिक राजधानी है। विश्व में समृद्ध शहर के रूप में उसकी एक पहचान है। मुंबई पूरे भारतवासियों की है और उस पर सभी भारतीयों को गर्व है। आखिर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए शिवसेना और महाराष्ट्र वन निर्माण सेना के नेता देश को बांटने वाले मुद्दों को इस तरह क्यों उछालते रहते रहते हैं? जिस तरह पाकिस्तान के हुक्मरान आजादी के बाद से अपनी राजनीति चलाने के लिए भारत विरोधी अभियान चलाए रहते हैं। वही काम यहां शिवसेना व उनके अनुषंगी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेतागण कर रहे हैं। वे भी यहां अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए समय-समय पर देश को बांटने वाले मुद्दा उछालते रहते हैं। दोनों में कोई फर्क नजर नहीं आता। उनके इन गैरजरूरी मुद्दों को प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया भी जिस तरह सनसनी की तरह पेश करते हैं। वह भी सोचनीय है। खबर बेचने के चक्कर में मीडिया उन्हें हीरो की तरह पेश करने लगते हैं। इससे भी उनका मनोबल और बढ़ जाता है। बल्कि मीडिया को चाहिए कि वह उन्हें ज्यादा कवरेज भी न करें, जिससे वे हतोत्साहित हो सकें। आम लोगों व बुद्धिजीवियों को भी चाहिए कि वे अपनी शुद्र राजनीति करने वाले ऐसे संगठनों का भी सड़क पर उतरकर विरोध करे। इस समय महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार भी शिवसैनिकों व उनके कार्यकर्ताओं के सुर में सुर मिला रही है। वहां उत्तर भारतीयों पर आए दिन शिवसैनिक व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता मारपीट करते रहते हैं और धमकी देते रहते हैं और पूरा तंत्र चुपचाप देखता व सुनता रहता है।
एकता में अनेकता ही भारत की पहचान है। उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक देश एक है और किसी भी राज्य के नागरिकों को देश के किसी भी राज्य या हिस्से में रहने, नौकरी करने व बोलने की आजादी है। देश को बांटने वाला कोई भी करतूत देशद्रोह के समान है। दुख की बात है कि उनकी इन हरकतों को अन्य राजनीतिक पार्टियां भी मौन साधकर उनकी देश विरोधी हरकतों को चुपचाप देख रही हैं। जब कभी कुछ कहती है तो वह भी वोट के खातिर। सबसे बड़ी दुख की बात है कि राष्ट्रभाषा हिंदी को महाराष्ट्र में बोलने पर भी पाबंदी लगाने के लिए उत्तर भारतीयों पर शिवसेना व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता जबरदस्ती करने लगे हैं। भाषा की स्वतंत्रता व्यक्तिगत होता है। भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम है। हिंदी में बोलना तो गौरव की बात है। मराठी बोलने व सीखने के लिए किसी पर दबाव नहीं बनाया जा सकता है। अगर आवश्यकता होगी तो मुंबई में रहने वाले लोग उसे भी सीखेंगे, लेकिन वह व्यक्तिगत मामला है। इसे सीखने के लिए दबरदस्ती नहीं किया जा सकता। देश में हिंदी के साथ ही सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान है, लेकिन उसे सीखने के लिए जबरदस्ती नहीं किया जा सकता। लगता है शिवसेना व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेतागण मुंबई और महाराष्ट्र को अपनी जागीर समझ बैठे हैं और जब चाहे व उसे अपनी उंगली पर नचा सके। देश को बांटने वाले ऐसे संगठनों व पार्टियों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। उत्तर भारतीयों व भाषावाद के मुद्दे पर पहली बार भाजपा ने शिवसेना का विरोध किया है, लेकिन वह भी अपनी राजनीतिक मजबूरियों की वजह से किया है। कांग्रेस सिर्फ खानापूर्ति कर रही है। आम लोग और बुद्धिजीवी दुबके हुए हैं। अगर कोई बोल देता है तो शिवसेना के कार्यकर्ता उसकी ऐसी की तैसी करने सड़क पर उतर आते हैं। शाहरुख खान मामले में यही हो रहा है। शाहरुख खान ने ऐसा कुछ नहीं कहा कि जिससे शिवसेना के सम्मान को ठेस पहुंचे। मगर शिवसेना को तो मुद्दा चाहिए था अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए सो अवसर देखा और शाहरुख खान का विरोध करना शुरू कर दिया। उनकी फिल्म ‘माइ नेम इज खान’ का प्रदर्शन भी मुंबई में रुकवा दिया। आखिर ये कैसी दादागीरी है? डर के मारे टाकीजों के मालिक भी फिल्म के पोस्टर हटा दिए। आखिर कब तक ऐसा चलेगा? शाहरुख खान को भी इन अतिवादी लोगों के सामने झुकना पड़ा और फिल्म को नुकसान पहुंचने के लिए फिल्म निर्माता से माफी मांगनी पड़ी। उन्हें उन अनकही बातों के लिए भी सफाई देनी पड़ी कि जो उन्होंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं, जो कुछ कहा वह उनका निजी राय थी। उन्होंने साफ कहा कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे किसी को ठेस पहुंचे और न ही वे कोई राजनीति करना चाहते हैं। क्या इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी नहीं है?
अगर सभी राज्यों के लोग शिवसेना व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की तरह करने लगे तो देश का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। आज हम भारत को इक्वीसवीं सदी में विश्व शक्ति के रूप में देखने लगे हैं। क्या इस तरह टुकड़ों में बंटकर हम विश्व शक्ति बन पाएंगे? पूरी दुनिया की निगाहें भी हम पर आर्थिक शक्ति के रूप में टिकी हुई है। ऐसे में इस तरह की शुद्र घटनाक्रम दुनिया के सामने हमें शर्मींदगी महसूस कराती। आज जब पूरी दुनिया ग्लोबल विलेज बन रही है। ऐसे में हम आपस में कभी भाषा के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर लड़कर खुद को कमजोर करने और छोटी मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। समय रहते इन पर काबू नहीं पाया गया तो हमारा विश्व शक्ति व आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना सिर्फ सपना ही रह जाएगा।
एकता में अनेकता ही भारत की पहचान है। उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक देश एक है और किसी भी राज्य के नागरिकों को देश के किसी भी राज्य या हिस्से में रहने, नौकरी करने व बोलने की आजादी है। देश को बांटने वाला कोई भी करतूत देशद्रोह के समान है। दुख की बात है कि उनकी इन हरकतों को अन्य राजनीतिक पार्टियां भी मौन साधकर उनकी देश विरोधी हरकतों को चुपचाप देख रही हैं। जब कभी कुछ कहती है तो वह भी वोट के खातिर। सबसे बड़ी दुख की बात है कि राष्ट्रभाषा हिंदी को महाराष्ट्र में बोलने पर भी पाबंदी लगाने के लिए उत्तर भारतीयों पर शिवसेना व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता जबरदस्ती करने लगे हैं। भाषा की स्वतंत्रता व्यक्तिगत होता है। भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम है। हिंदी में बोलना तो गौरव की बात है। मराठी बोलने व सीखने के लिए किसी पर दबाव नहीं बनाया जा सकता है। अगर आवश्यकता होगी तो मुंबई में रहने वाले लोग उसे भी सीखेंगे, लेकिन वह व्यक्तिगत मामला है। इसे सीखने के लिए दबरदस्ती नहीं किया जा सकता। देश में हिंदी के साथ ही सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान है, लेकिन उसे सीखने के लिए जबरदस्ती नहीं किया जा सकता। लगता है शिवसेना व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेतागण मुंबई और महाराष्ट्र को अपनी जागीर समझ बैठे हैं और जब चाहे व उसे अपनी उंगली पर नचा सके। देश को बांटने वाले ऐसे संगठनों व पार्टियों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। उत्तर भारतीयों व भाषावाद के मुद्दे पर पहली बार भाजपा ने शिवसेना का विरोध किया है, लेकिन वह भी अपनी राजनीतिक मजबूरियों की वजह से किया है। कांग्रेस सिर्फ खानापूर्ति कर रही है। आम लोग और बुद्धिजीवी दुबके हुए हैं। अगर कोई बोल देता है तो शिवसेना के कार्यकर्ता उसकी ऐसी की तैसी करने सड़क पर उतर आते हैं। शाहरुख खान मामले में यही हो रहा है। शाहरुख खान ने ऐसा कुछ नहीं कहा कि जिससे शिवसेना के सम्मान को ठेस पहुंचे। मगर शिवसेना को तो मुद्दा चाहिए था अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए सो अवसर देखा और शाहरुख खान का विरोध करना शुरू कर दिया। उनकी फिल्म ‘माइ नेम इज खान’ का प्रदर्शन भी मुंबई में रुकवा दिया। आखिर ये कैसी दादागीरी है? डर के मारे टाकीजों के मालिक भी फिल्म के पोस्टर हटा दिए। आखिर कब तक ऐसा चलेगा? शाहरुख खान को भी इन अतिवादी लोगों के सामने झुकना पड़ा और फिल्म को नुकसान पहुंचने के लिए फिल्म निर्माता से माफी मांगनी पड़ी। उन्हें उन अनकही बातों के लिए भी सफाई देनी पड़ी कि जो उन्होंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं, जो कुछ कहा वह उनका निजी राय थी। उन्होंने साफ कहा कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे किसी को ठेस पहुंचे और न ही वे कोई राजनीति करना चाहते हैं। क्या इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी नहीं है?
अगर सभी राज्यों के लोग शिवसेना व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की तरह करने लगे तो देश का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। आज हम भारत को इक्वीसवीं सदी में विश्व शक्ति के रूप में देखने लगे हैं। क्या इस तरह टुकड़ों में बंटकर हम विश्व शक्ति बन पाएंगे? पूरी दुनिया की निगाहें भी हम पर आर्थिक शक्ति के रूप में टिकी हुई है। ऐसे में इस तरह की शुद्र घटनाक्रम दुनिया के सामने हमें शर्मींदगी महसूस कराती। आज जब पूरी दुनिया ग्लोबल विलेज बन रही है। ऐसे में हम आपस में कभी भाषा के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर लड़कर खुद को कमजोर करने और छोटी मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। समय रहते इन पर काबू नहीं पाया गया तो हमारा विश्व शक्ति व आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना सिर्फ सपना ही रह जाएगा।
टिप्पणियाँ
merajawab.blogspot.com
आपका और आपके विचारों का स्वागत है.
वार्ड वेरिफिकेसन हटा दें कुछ फायदा नहीं होता.
shubhkamnayein,
ek sujhav hai, commentbox se ye word veryfication ka locha hataa dein to behatar hai.