हिंसा पर जनतंत्र भारी

रायपुर, छत्तीसगढ़ में १४ नवम्बर को पहले चरण के लिए हुए ३९ सीटों के मतदान में नक्सलियों तांडव मचाया, लेकिन लोगों ने उसकी हिंसा को नकारते हुए सरकार बनाने के लिए वोट दिया। आंकडों के हिसाब से ६० फीसदी मतदान हुआ, जबकि मैदानी इलाकों में ६५ से ७० फीसदी मत पड़े। बस्तर, दंतेवाडा, बीजापुर जैसे नक्सली इलाके में बन्दूक के साये में मतदान हुआ। लोगों ने जान जोखिम में डालकर नक्सलियों को बता दिया की हम शान्ति चाहते हैं, विकास चाहते हैं, हिंसा नही। अख़बारों के अनुसार बस्तर में २४ स्थानों पर पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई । इनमें दो जवान शहीद हो गए । नक्सली उत्पात के कारण २१ बूथों पर मतदान भी नही हो सका । आखिर नक्सली चाहते क्या हैं। अपने ही बेगुनाह लोगों की जान लेकर वो क्या साबित करना चाहते हैं। वे तथाकथित जिस शोषण के खिलाफ हथियार उठाये हैं। वो ख़ुद आज भोले-भले आदिवासियों का शोषण करने लगें हैं। बेगुनाहों का जान ले रहे हैं। आज की तारीख में नक्सलियों का काम एक आतंकवादी व देशद्रोही की तरह है । उनको samjhana चाहिए की जिस hak के लिए वे ladai lad रहे हैं । वह सिर्फ़ लोकतंत्र का hissa होकर ही hasil किया ja सकता है। इसका सबसे अच्छा example अपना पड़ोसी राज्य nepal है। वहां के maovadion ने लोकतंत्र का hissa bankar अपना lakshya hasil कर लिया। आज वहां उनकी सरकार है। नक्सलियों को समझ जाना चाहिए की हिंसा के जरिये वे aapna lakshya hasil नहीं कर सकते unhe हथियार chhodna पड़ेगा।

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